पाषाण काल का आरंभिक काल पुरापाषाण काल के नाम से भी जाना जाता है भारत में सर्वप्रथम 1807 ईस्वी में ब्रिटिश भू विज्ञानी रॉबर्ट ब्रूस फुट ने पल्लावरम(मद्रास) से पाषाण निर्मित साक्ष्य प्राप्त किया था।
1935 ईस्वी में डी. टेरा तथा पीटरसन ने शिवालिक पहाड़ियों से महत्वपूर्ण पाषाण उपकरण प्राप्त किए।
पुरापाषाण काल को तीन भागों में विभाजित किया जाता - निम्न पुरापाषाण काल , मध्य पुरापाषाण काल, उत्तर पूर्व पाषाण काल।
निम्न पुरापाषाण काल: इस काल के पाषाण उपकरण सोहन नदी घाटी (पाकिस्तान के पंजाब प्रांत), सिंगरौली घाटी (उत्तर प्रदेश), छोटानागपुर नर्मदा घाटी तथा समस्त भारत (सिंध एवं केरल को छोड़कर) में पाए गए हैं।
मुख्य उपकरण- शल्क, गंडासा, खंडक उपकरण, हस्तकुठार, और बटिकाश्म।
नर्मदा घाटी से होमोइरेक्टस की अस्थि अवशेष प्राप्त हुए। इस काल को सोहन संस्कृति, चॉपर-चापिग पेबुल संस्कृति तथा हैंडएक्स संस्कृति भी कहा जाता है।
इस काल का मानव जानवरों का शिकार करता था तथा कंदराओ में जानवरों की तरह रहा करता था।
मध्य पुरा पाषाण काल: इस काल में सिंध (पाकिस्तान), केरल और नेपाल को छोड़कर भारत के प्रायः सभी प्रांतों में मनुष्यों के अस्तित्व के प्रमाण प्राप्त हुए हैं। मुख्य स्थल- नेवासा (महाराष्ट्र), डीडवाना (राजस्थान), भीमबेटका, नर्मदा घाटी, पुरुलिया (पश्चिम बंगाल) तुंगभद्रा नदी घाटी थी।
भीमबेटका के 200 से अधिक चट्टानी गुफाओं से इस काल के लोगों के रहने के साक्ष्य मिले हैं। चित्रकारी के भी प्रमाण मिले हैं। भीमबेटका की गुफाओं में चित्रकारी में हरे तथा गहरे लाल रंग का उपयोग हुआ है।
उच्च पुरापाषाण काल:रेनिगुंटा तथा कुरनूल (आंध्र प्रदेश), सोलापुर एवं बीजापुर में इसके प्रमाण मिले हैं।
अस्थि उपकरण- अलंकृत छेड़े, मत्स्य भाला (हारपून) नोकदार सुइयां। बेलन घाटी से शुद्ध फलक उद्योग के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
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